Sunday, May 18, 2008

gadhe

अबे स्साले जब से स्टार न्यूज़ गए हो टैब से ऐसे गायब हुए हो जैसे गधे का सिर से सींग। फोन तो उठा लिया करो।

Wednesday, March 5, 2008

अन्धविश्वाश को रोकना ही होगा

आप कहते हैं की यह ग़लत नही है। मैं कहता हूँ की यह बहुत ग़लत है। क्या सिर्फ़ कम का हो जाना ही सही है?क्या उसके तरीकों की शुचिता का ध्यान नही रखा जाना चाहिए? ठीक है की मन्दिर के निर्माण के लिए महिलाओं से उपलों की जरूरत थी और इस जरूरत के लिए अन्धविश्वाश का सहारा लेने से काम हो गया। पर इससे क्या ये खतरा नही पैदा होता की ऐसे ही किसी ग़लत काम के लिए भी भोली भली महिलाओं को बहकाया जा सकता है?क्या ये जरूरी नही है की उन लोंगो को जागरूक बनाया जाए जो धार्मिक अन्ध्विश्वाशों में फंसकर कई बार ग़लत कदम उठा बैठतें हैं?ठीक है की एक बार काम हो गया लेकिन इससे सबसे बड़ा खतरा जो पैदा होता है वो ये है की इस तरह से उन सभी लोंगो को बहकाया जा सकता है और उनकी भावनावों का ग़लत फायदा उठाया जा सकता है। इससे बचा जाना चाहिए।

Monday, March 3, 2008

अंध विशवास का उजला प्रयोग

हाँ अंध विशवास में यकीन करना बेवकूफी का काम है पर हम किसी ऐसे काम को अंध विशवास के माध्यम से करवाले जो की बहुत जरूरी हो या समाज के हित में हो तो क्या इसमे क्या कोई बुराई है? aऐसा एक वाकया हुआ हमारे कसबे में। यहाँ पर हमारी कुलदेवी के मन्दिर का निर्माण हो रहा है इसमें सहयोग के लिए सभी ने बढ -चड़कर राशी दी। और महिलाहों ने भी यहाँ भजन -पूजा कर निर्माण कार्य के माहोल में जीवन्तता बनाये रखी । एक दिन किसी काम के लिए गोबर के उपलों की जरूरत हुई तो महिलाओं से कहा गया की अपने-अपने घरों से उपलें लेकर आयें । लेकिन कहतें है की औरतों रुपियें- पसें का नुकसान सह सकती हैं पर अपने हाथों से बनाये इन गोबर के उपलों का नही । इस प्रकार बहुत दिनों के बढ भी उपलों का प्रबंध नही हो पाया । मन्दिर के निर्माण का काम जरूरी था अंत में मन्दिर निर्माण कमेटी के एक सदस्य ने एक जुगत भिडायी उनोहोने अफवाह उडाई की रत को उनके सपने मी देवी माता ने दर्सन दिया और कहा की मेरे मन्दिर बनने मी देर हो रही है इसलिए हर महिला अपने -अपने घर से सुहाग की साडी पहन कर कम से कम १० उपलें मन्दिर में ले जाकर रखे । ये बात आग की तरह उडी और एक दिन के बाद वहां उपलों का छोटा सा पहाड़ लग गया था । इस प्रकार आराम से मन्दिर का निर्माण हो गया । तो क्या अंध विशवास का ऐसा प्रयोग गलत है।

Thursday, February 28, 2008

छोटे -छोटे सहरों से हम तो झोला उठाकर चले । आज चाहे इलाहाबाद का निखिल चतुर्वेदी फिल्मों मे हीरों तो बीकानेर का संदीप इंडियन आइडल हो गया । शिव शंकर चौरसिया गोल्फ विजेता बना तो गाँव-कस्बों के किसानों ने महेन्द्र सं टिकेट के साथ मिलकर देल्ही हिला दी । चाहे खेल का मैदान हो ,बिजनेस या इंजीनिरिंग हो ,राजनीती का अखाडा हो या कला का मंच । हर एरिया मे इन छोटे सहरों और गाँव कस्बों के बंटी और बब्लीओं ने अपनी उपस्तिथि दर्ज कराई है । प्रवीण कुमार समाज मे आ रहे इन बदलावों का एक प्रतीकात्मक चेहरा हैं।

Sunday, February 17, 2008

सच कहा प्यार की अधूरी दास्ताँ दुनिया वालो को जगाती है

अरे प्यार ही तों किया था किसी लड़की से क्यो फ्री मेबदनाम कर देते है लोग अरे ये वही लोग है जिन्हें प्यार की एबीसी भी नही आती ?इन अभागो को तों प्यार क दर्द्दभी नही मिलता खुद तों प्यार करते नही औरो का जीना मुश्किल किये रहते है ?फिर भी ते लोग रोके नही सकते जल्द ही ऐसे पापियो से लड़ने के लिए एक अन्तेर्राष्ट्रीय संग्त्तन बनाना चाहिऐ .और प्यार की खिलाफत करने वालो को जड़े से ख़त्म कर्देना चाहिऐ

हम अपना अधिकार मांगते,नहीं किसी से भीख मांगते

आज एकतरफा प्रेमियों को बहुत सी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। सब तो ठीक है पर अगर बहुत हिम्मत करके ,प्रेमी अपने प्रेम का इजहार कर देता है तो अव्वल तो लडकी अनसुना कर देती है या फिर अपने घर वालों से कह देती है। इसका नतीजा क्या होता है ये आप सब जानते हैं।
"बेचारा लड़का "बेमुरौब्बत मारा जाता है। घर वालों के लिए यह "दुर्घटना" चुल्लू भर पानी में डूब मरने वाली होती है। उसे आवारा और लफंगा समझा जाता है। उसकी भावनाओं पर "चिक्का" मारा जाता है। उसे बिल्कुल नाकारा समझा जाता है। इसके लिए जरुरी है की एक संगठन बनाया जाए जो एकतरफा प्रेमियों की आवाज़ को बुलंद कर सके। उन्हें उनके अधिकार दिला सके। हम आपके प्रयास की सराहना करते हैं। "गौतम तुम संघर्ष करो,हम तुम्हारे साथ हैं."तर्कुलवा वाले बाबा की जय।

Friday, February 15, 2008

वैलेंटाइन दिवस की पूर्व संध्या पर देश के एकतरफा प्रेमिओं के नाम संदेश

प्रिय प्रेमियो [एकतरफा]मैं जानता हूँ कि कल का दिन आप लोगों के लिए मानसिक रूप से बड़ा चुनोती भरा होगालेकिन इस मुसीबत कि घड़ी मे आप अपने आप को अकेला न समझे क्योंकि हिंदुस्तान मे इस प्रजाति के जीवों कि संख्या करोडों मे है जिनमे से एक मैं भी हूँ । भारत एक लोकतांत्रिक देश है और इसके अधिकांश युवा इस वर्ग से आते हैं । हमारी परेशानी यह है कि कोई हमे seriously नही लेता है ,हमे फालतू समझा जाता है। यहाँ तक कि जिसके लिए हम आपने आप को फ़ना कर लेते हैं वह हमारी भावनाओं को कि कद्र करना तो दूर हमारी तरफ़ देखती भी नही है और बचपन से हम सब इस discriminaton का शिकार होते आयें हैं किंतु किसीने भी हमारी आवाज़ नही उठाई ।दोस्तों अब समय आ गया है की हम अपनी मुसीबतों का दुनिया के आगे रोना छोड़ कर अपने लिए ख़ुद सोंचे .हमारे पास खोने के लिए कुछ नही है और पाने के लिए बहुत कुछ है जिसमें एक अदद प्रेमिका भी शामिल है .इसके लिए humen एकजुट hona पड़ेगा । हमें एक संघ बनाना पडेगा और उसके झंडे के निचे एकत्रित होना होगा .इस संघ के दबाव का प्रयोग कर अपनी मांगे मनवानी होगी ।iska nam hoga' अखिल भारतीय एकतरफा प्रेमी संगठन '[रजी ]सलमान खान इसके प्रेसिडेंट होंगे और विवेक ओबेराय वायस प्रेसिडेंट ।हमारी मांगे होंगी हमे रिज़र्वेशन दिया जाए क्योंकि हम हम अपने एकतरफा प्यार करने की वजह से अपने कम पर पुरा मन नही लगा पाते । मानसिक अस्पतालों में humen मुफ्त सुविधाएँ मिलें । हमारे लिए ट्रेनिंग सेंटर खोले जायें । हमारे लिए गलत बोलने वालो के खिलाफ कानून बना कर उन्हें दंडित किया जाए । तो दोस्तों जरूरत इस बात की है की देश के कोने कोने तक हमारे संगठन की सखायेँ विकसित हो अत : इसके लिए अधिक से अधिक संख्या मे इस संगठन से से जुड़ें और अपनी बिरादरी के लिए काम करने का गौरव प्राप्त करें ।

Monday, February 11, 2008


हम चुप हैं ।
बर्तन होटल पर धोता है ,फटे कपड़ो में सोता हैवो किसी और का बेटा है ,इसलिए हम चुप है।सड़को पर भीख मांगती है ,और मैला सर पे है।वह बहन किसी और की है ,इसीलिए हम चुप है।बेटी की इज्जत लुट जाने पर भी वो बेबस कुछ न कर पाती है ।वो माँ है किसी और कि इसीलिए हम चुप हैं ।दिन भर मजदूरी करता है, फिर भी भूखा सोता है ।किसी और का भाई है वो ,इसीलिए हम चुप है ।बेटी का दहेज जुटाने को ,कितने समझोते करता हैवह किसी और का बाप है ,इसलिए हम चुप हैं ।चुप रहना हमने सीख लिया है ,बंद करके अपने होंठो को ।और जीना हमने सीख लिया है ,बंद कर के अपने होंट को ।लकिन याद रखो दोस्तों ,एक ऐसा दिन भी आयेगा ।अत्य्चार हम पे होगा ,और तब हमसे बोला न जाएगा ।क्योंकि हम चुप हैं ।गौतम यादव , भारतीय जनसंचार केन्द्र ,नई देहली
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25.1.08

धरत राष्ट्र के अनुयायी
हम भारतीय अपनी परम्पराओं का पालन बढ़ी ईमानदारी के साथ करते हैं .भाई इसी से तो हमारी संस्कृति इतनी महान है.जरा सोचिएगा अगर धरत राष्ट्र पुत्र मोह में नही पड़ते तो महाभारत कैसे होता और भारतीय संस्कृती का इतना महान ग्रंथ कैसे लिखा जाता ।इसी परम्परा को अब हमारे नेता बढ़ी निष्ठा के साथ निभा रहें हैं । भारत मेँ अनेक धरत राष्ट्र पैदा हो गए हैं .पुत्र मोह परम्परा के लिए मराठी शेर बल ठाकरे ने तो पार्टी ही तुड़वा ली .अपने देव गोड्डा साहब ने तो बेटे के चक्कर में पार्टी का घनचक्कर ही बना दिया है .बेटे कुलदीप विस्नोई खातिर अपने भजन करने के दिनों मेँ भजनलाल ने कांग्रेस छोड़ कर नई पार्टी ही बना डाली .उधर शरद पंवार के खेमे से भी खबर आ रही है कि भतीजा अजित पंवार ख़म ठोंक सकता है .लकिन इस परम्परा को निभाने का स्वर्ण पदक मिलेगा हमारे माननीय कलिग्नार करुनानिधि जी को ,इन साहब ने तो परम्परा के लिए अपने भांजे को केन्द्रीय मंत्री के पद से सीधे जमीन पर ला पटका .बहरहाल संतोष है कि अब आने वाली जनरेशन के लिए अनेक महाभारतों की सम्र्द्साली विरासत तो छोड़जायेंगे।गौतम यादव भारतीय जनसंचार संस्थान ,नईदिल्ली gautamyadav420@gmail.com
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24.1.08

जुगाड़ सास्तर
यह सही है कि अभाव मेँ एक अलग किस्म की रचना शक्ति को जनम देता है.उसका नाम है जुगाड़ .और यह कला हम भारतियो मेँ कूट कूट कर भरी हुई है.हमने एक बार फिर साबित कर दिया कि जुगाड़ सास्तर के हम सबसे बडे कलाकार हैं ।कहीं कि ईंट कही का रोड़ा कि तर्ज पर बना डाली दुनिया कि सबसे सस्ती कार .पूरी दुनिया हमारा मुहं तकती रह गयी ।पर बेचारे दुनिया वाले क्या जाने कि जुगाड़ एक ऐसी कला है जिसे हम भारतीय बचपन से ही एक अतिरिक्त योग्यता के रूप मेँ सीखते हैं .अब चाहे पेपर मेँ पास होने के लिए 'नक़ल' , किराया बचाने के लिए' रेल की छत पर बैठकर सफर करना',शादी के लिए 'कुंडली' का जुगाड़, झमेले से बचने के लिए' रिश्वत 'का ,या फिर नोकरी पाने के लिए सोर्स का जुगाड़ हो । इस कला मेँ हम पारंगत हो जाते हैं ।अब बाकी दुनिया जले तो जले .उसकी बला से .पर एक लाख की कार तो भारतीय इंजिनियर ही बना सकते है न .भाई ,एक अतिरिक्त गुण जो दिया है उपरवाले ने.

Sunday, February 10, 2008

चलों किताबें फाड़े
आज सवेरे से एक दर्जन किताबें फाड़ चूका हूँ और hajoron बार इनके लेखकों को गरिया चूका हूँ.पता नही कब तक मेरा ये अभियान जरी रहेगा ।तीसरी क्लास से पढता आ रह हूँ कि भारत एक कृषि प्रधान देश है .पर मुझे दिन रात यही लगता है कि भारत एक क्रिकेट प्रधान देश है । मुझे ऐसा लगने के कई कारन है ,इनमे से कुछ को यहाँ पर दे रह हूँ ,बाकी कारणों को जानने के लिए मेरी जल्द ही प्रकाशित होने वाली किताब मैं पढ़ लेना ।१ सचिन के टेनिस अल्बो के इलाज कि खबर मीडिया मैं ज्यादा द्धिखी या १०००० किसानों कि मोत की ।किसान को अन्न दाता कहकर भगवन कहकर उसका मजाक बनाया जाता है ,कभी किसी भगवन को भूख से मरते देखा है । भगवन सोने के singhaasano पर बैठे खिलाडी है । cricket लिए होने वाले हवन तो बहुत देखे होंगे पर कभी किसानों के लिए आम जनता न इस तरह से सोंचा है ।४ आईसीसी मैं भारतीय अधि करिओं कि दबंगी देखी होगी पर डब्लू टी ओ के समेलन के समय ये दब्न्गी कहाँ घुश जाती है ।क्रिकेट के लिए जनता सड़कों पर उतरती है कभी कृषि के लिए ऐसा होते देखा है ।५आप् ही बताएं कि सरद पवार को इच्ल की चौनोती कि चिंता जयादा है या उतर प्रदेश मी गन्ने कि खेती जलाते किशान की ।जनता वोट किशान कि अपील पर देती है या क्रिच्केतर की अपील पर ।तो दोस्तों यदि मुझसे सहमत हो तो मेरा साथ किताबों को फाड़ने के अभियान मी सामिल हो जाओ और इस देश के हर चोक चोराहे पर लिख दो की भारत एक क्रिकेट प्रधान देश है ।आप मुझसे सहमत है न।गौतम यादव भारतीय जनसंचार संस्थान नई डेल्ही

Wednesday, January 30, 2008