चलों किताबें फाड़े
आज सवेरे से एक दर्जन किताबें फाड़ चूका हूँ और hajoron बार इनके लेखकों को गरिया चूका हूँ.पता नही कब तक मेरा ये अभियान जरी रहेगा ।तीसरी क्लास से पढता आ रह हूँ कि भारत एक कृषि प्रधान देश है .पर मुझे दिन रात यही लगता है कि भारत एक क्रिकेट प्रधान देश है । मुझे ऐसा लगने के कई कारन है ,इनमे से कुछ को यहाँ पर दे रह हूँ ,बाकी कारणों को जानने के लिए मेरी जल्द ही प्रकाशित होने वाली किताब मैं पढ़ लेना ।१ सचिन के टेनिस अल्बो के इलाज कि खबर मीडिया मैं ज्यादा द्धिखी या १०००० किसानों कि मोत की ।किसान को अन्न दाता कहकर भगवन कहकर उसका मजाक बनाया जाता है ,कभी किसी भगवन को भूख से मरते देखा है । भगवन सोने के singhaasano पर बैठे खिलाडी है । cricket लिए होने वाले हवन तो बहुत देखे होंगे पर कभी किसानों के लिए आम जनता न इस तरह से सोंचा है ।४ आईसीसी मैं भारतीय अधि करिओं कि दबंगी देखी होगी पर डब्लू टी ओ के समेलन के समय ये दब्न्गी कहाँ घुश जाती है ।क्रिकेट के लिए जनता सड़कों पर उतरती है कभी कृषि के लिए ऐसा होते देखा है ।५आप् ही बताएं कि सरद पवार को इच्ल की चौनोती कि चिंता जयादा है या उतर प्रदेश मी गन्ने कि खेती जलाते किशान की ।जनता वोट किशान कि अपील पर देती है या क्रिच्केतर की अपील पर ।तो दोस्तों यदि मुझसे सहमत हो तो मेरा साथ किताबों को फाड़ने के अभियान मी सामिल हो जाओ और इस देश के हर चोक चोराहे पर लिख दो की भारत एक क्रिकेट प्रधान देश है ।आप मुझसे सहमत है न।गौतम यादव भारतीय जनसंचार संस्थान नई डेल्ही
Sunday, February 10, 2008
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