Wednesday, March 5, 2008

अन्धविश्वाश को रोकना ही होगा

आप कहते हैं की यह ग़लत नही है। मैं कहता हूँ की यह बहुत ग़लत है। क्या सिर्फ़ कम का हो जाना ही सही है?क्या उसके तरीकों की शुचिता का ध्यान नही रखा जाना चाहिए? ठीक है की मन्दिर के निर्माण के लिए महिलाओं से उपलों की जरूरत थी और इस जरूरत के लिए अन्धविश्वाश का सहारा लेने से काम हो गया। पर इससे क्या ये खतरा नही पैदा होता की ऐसे ही किसी ग़लत काम के लिए भी भोली भली महिलाओं को बहकाया जा सकता है?क्या ये जरूरी नही है की उन लोंगो को जागरूक बनाया जाए जो धार्मिक अन्ध्विश्वाशों में फंसकर कई बार ग़लत कदम उठा बैठतें हैं?ठीक है की एक बार काम हो गया लेकिन इससे सबसे बड़ा खतरा जो पैदा होता है वो ये है की इस तरह से उन सभी लोंगो को बहकाया जा सकता है और उनकी भावनावों का ग़लत फायदा उठाया जा सकता है। इससे बचा जाना चाहिए।

Monday, March 3, 2008

अंध विशवास का उजला प्रयोग

हाँ अंध विशवास में यकीन करना बेवकूफी का काम है पर हम किसी ऐसे काम को अंध विशवास के माध्यम से करवाले जो की बहुत जरूरी हो या समाज के हित में हो तो क्या इसमे क्या कोई बुराई है? aऐसा एक वाकया हुआ हमारे कसबे में। यहाँ पर हमारी कुलदेवी के मन्दिर का निर्माण हो रहा है इसमें सहयोग के लिए सभी ने बढ -चड़कर राशी दी। और महिलाहों ने भी यहाँ भजन -पूजा कर निर्माण कार्य के माहोल में जीवन्तता बनाये रखी । एक दिन किसी काम के लिए गोबर के उपलों की जरूरत हुई तो महिलाओं से कहा गया की अपने-अपने घरों से उपलें लेकर आयें । लेकिन कहतें है की औरतों रुपियें- पसें का नुकसान सह सकती हैं पर अपने हाथों से बनाये इन गोबर के उपलों का नही । इस प्रकार बहुत दिनों के बढ भी उपलों का प्रबंध नही हो पाया । मन्दिर के निर्माण का काम जरूरी था अंत में मन्दिर निर्माण कमेटी के एक सदस्य ने एक जुगत भिडायी उनोहोने अफवाह उडाई की रत को उनके सपने मी देवी माता ने दर्सन दिया और कहा की मेरे मन्दिर बनने मी देर हो रही है इसलिए हर महिला अपने -अपने घर से सुहाग की साडी पहन कर कम से कम १० उपलें मन्दिर में ले जाकर रखे । ये बात आग की तरह उडी और एक दिन के बाद वहां उपलों का छोटा सा पहाड़ लग गया था । इस प्रकार आराम से मन्दिर का निर्माण हो गया । तो क्या अंध विशवास का ऐसा प्रयोग गलत है।