Tuesday, March 24, 2009

दिनेश

Sunday, May 18, 2008

gadhe

अबे स्साले जब से स्टार न्यूज़ गए हो टैब से ऐसे गायब हुए हो जैसे गधे का सिर से सींग। फोन तो उठा लिया करो।

Wednesday, March 5, 2008

अन्धविश्वाश को रोकना ही होगा

आप कहते हैं की यह ग़लत नही है। मैं कहता हूँ की यह बहुत ग़लत है। क्या सिर्फ़ कम का हो जाना ही सही है?क्या उसके तरीकों की शुचिता का ध्यान नही रखा जाना चाहिए? ठीक है की मन्दिर के निर्माण के लिए महिलाओं से उपलों की जरूरत थी और इस जरूरत के लिए अन्धविश्वाश का सहारा लेने से काम हो गया। पर इससे क्या ये खतरा नही पैदा होता की ऐसे ही किसी ग़लत काम के लिए भी भोली भली महिलाओं को बहकाया जा सकता है?क्या ये जरूरी नही है की उन लोंगो को जागरूक बनाया जाए जो धार्मिक अन्ध्विश्वाशों में फंसकर कई बार ग़लत कदम उठा बैठतें हैं?ठीक है की एक बार काम हो गया लेकिन इससे सबसे बड़ा खतरा जो पैदा होता है वो ये है की इस तरह से उन सभी लोंगो को बहकाया जा सकता है और उनकी भावनावों का ग़लत फायदा उठाया जा सकता है। इससे बचा जाना चाहिए।

Monday, March 3, 2008

अंध विशवास का उजला प्रयोग

हाँ अंध विशवास में यकीन करना बेवकूफी का काम है पर हम किसी ऐसे काम को अंध विशवास के माध्यम से करवाले जो की बहुत जरूरी हो या समाज के हित में हो तो क्या इसमे क्या कोई बुराई है? aऐसा एक वाकया हुआ हमारे कसबे में। यहाँ पर हमारी कुलदेवी के मन्दिर का निर्माण हो रहा है इसमें सहयोग के लिए सभी ने बढ -चड़कर राशी दी। और महिलाहों ने भी यहाँ भजन -पूजा कर निर्माण कार्य के माहोल में जीवन्तता बनाये रखी । एक दिन किसी काम के लिए गोबर के उपलों की जरूरत हुई तो महिलाओं से कहा गया की अपने-अपने घरों से उपलें लेकर आयें । लेकिन कहतें है की औरतों रुपियें- पसें का नुकसान सह सकती हैं पर अपने हाथों से बनाये इन गोबर के उपलों का नही । इस प्रकार बहुत दिनों के बढ भी उपलों का प्रबंध नही हो पाया । मन्दिर के निर्माण का काम जरूरी था अंत में मन्दिर निर्माण कमेटी के एक सदस्य ने एक जुगत भिडायी उनोहोने अफवाह उडाई की रत को उनके सपने मी देवी माता ने दर्सन दिया और कहा की मेरे मन्दिर बनने मी देर हो रही है इसलिए हर महिला अपने -अपने घर से सुहाग की साडी पहन कर कम से कम १० उपलें मन्दिर में ले जाकर रखे । ये बात आग की तरह उडी और एक दिन के बाद वहां उपलों का छोटा सा पहाड़ लग गया था । इस प्रकार आराम से मन्दिर का निर्माण हो गया । तो क्या अंध विशवास का ऐसा प्रयोग गलत है।

Thursday, February 28, 2008

छोटे -छोटे सहरों से हम तो झोला उठाकर चले । आज चाहे इलाहाबाद का निखिल चतुर्वेदी फिल्मों मे हीरों तो बीकानेर का संदीप इंडियन आइडल हो गया । शिव शंकर चौरसिया गोल्फ विजेता बना तो गाँव-कस्बों के किसानों ने महेन्द्र सं टिकेट के साथ मिलकर देल्ही हिला दी । चाहे खेल का मैदान हो ,बिजनेस या इंजीनिरिंग हो ,राजनीती का अखाडा हो या कला का मंच । हर एरिया मे इन छोटे सहरों और गाँव कस्बों के बंटी और बब्लीओं ने अपनी उपस्तिथि दर्ज कराई है । प्रवीण कुमार समाज मे आ रहे इन बदलावों का एक प्रतीकात्मक चेहरा हैं।

Sunday, February 17, 2008

सच कहा प्यार की अधूरी दास्ताँ दुनिया वालो को जगाती है

अरे प्यार ही तों किया था किसी लड़की से क्यो फ्री मेबदनाम कर देते है लोग अरे ये वही लोग है जिन्हें प्यार की एबीसी भी नही आती ?इन अभागो को तों प्यार क दर्द्दभी नही मिलता खुद तों प्यार करते नही औरो का जीना मुश्किल किये रहते है ?फिर भी ते लोग रोके नही सकते जल्द ही ऐसे पापियो से लड़ने के लिए एक अन्तेर्राष्ट्रीय संग्त्तन बनाना चाहिऐ .और प्यार की खिलाफत करने वालो को जड़े से ख़त्म कर्देना चाहिऐ

हम अपना अधिकार मांगते,नहीं किसी से भीख मांगते

आज एकतरफा प्रेमियों को बहुत सी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। सब तो ठीक है पर अगर बहुत हिम्मत करके ,प्रेमी अपने प्रेम का इजहार कर देता है तो अव्वल तो लडकी अनसुना कर देती है या फिर अपने घर वालों से कह देती है। इसका नतीजा क्या होता है ये आप सब जानते हैं।
"बेचारा लड़का "बेमुरौब्बत मारा जाता है। घर वालों के लिए यह "दुर्घटना" चुल्लू भर पानी में डूब मरने वाली होती है। उसे आवारा और लफंगा समझा जाता है। उसकी भावनाओं पर "चिक्का" मारा जाता है। उसे बिल्कुल नाकारा समझा जाता है। इसके लिए जरुरी है की एक संगठन बनाया जाए जो एकतरफा प्रेमियों की आवाज़ को बुलंद कर सके। उन्हें उनके अधिकार दिला सके। हम आपके प्रयास की सराहना करते हैं। "गौतम तुम संघर्ष करो,हम तुम्हारे साथ हैं."तर्कुलवा वाले बाबा की जय।