Monday, March 3, 2008

अंध विशवास का उजला प्रयोग

हाँ अंध विशवास में यकीन करना बेवकूफी का काम है पर हम किसी ऐसे काम को अंध विशवास के माध्यम से करवाले जो की बहुत जरूरी हो या समाज के हित में हो तो क्या इसमे क्या कोई बुराई है? aऐसा एक वाकया हुआ हमारे कसबे में। यहाँ पर हमारी कुलदेवी के मन्दिर का निर्माण हो रहा है इसमें सहयोग के लिए सभी ने बढ -चड़कर राशी दी। और महिलाहों ने भी यहाँ भजन -पूजा कर निर्माण कार्य के माहोल में जीवन्तता बनाये रखी । एक दिन किसी काम के लिए गोबर के उपलों की जरूरत हुई तो महिलाओं से कहा गया की अपने-अपने घरों से उपलें लेकर आयें । लेकिन कहतें है की औरतों रुपियें- पसें का नुकसान सह सकती हैं पर अपने हाथों से बनाये इन गोबर के उपलों का नही । इस प्रकार बहुत दिनों के बढ भी उपलों का प्रबंध नही हो पाया । मन्दिर के निर्माण का काम जरूरी था अंत में मन्दिर निर्माण कमेटी के एक सदस्य ने एक जुगत भिडायी उनोहोने अफवाह उडाई की रत को उनके सपने मी देवी माता ने दर्सन दिया और कहा की मेरे मन्दिर बनने मी देर हो रही है इसलिए हर महिला अपने -अपने घर से सुहाग की साडी पहन कर कम से कम १० उपलें मन्दिर में ले जाकर रखे । ये बात आग की तरह उडी और एक दिन के बाद वहां उपलों का छोटा सा पहाड़ लग गया था । इस प्रकार आराम से मन्दिर का निर्माण हो गया । तो क्या अंध विशवास का ऐसा प्रयोग गलत है।

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